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जिन्दगी / कुछ सूक्तियां / क्षणिकाएं

MANTHAN
MANTHAN
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लगभग साल भर बात लिख रहा हूँ. जिन्दगी है दिन …

(१)

जब तक आसमान में हैं सूरज
बटोरलो खुशियाँ सारी.

(२)

कितना भी जोड़ों
बचेगा जीरो ही .

(३)

सुबह की चंचलता
दुपहरी की स्थिरता
शाम की उदासीनता
और विश्राम रात्रि का.

(४)

डूबते सूरज को
थामने की कोशिश करता हूँ .
हारी हुई लड़ाई
रोज लड़ता हूँ .

विवेक पटाईत / कविता, ललित लेख इत्यादी(vivekpatait.blogspot.in )

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