Menu
blogid : 2675 postid : 1350384

ययाति

MANTHAN
MANTHAN
  • 22 Posts
  • 9 Comments

क्षमा, दया आणि सहिष्णुता
है मनुजताके गहने
त्यागसहित भोग में है
मानव जीवनकी सार्थकता
इति ऋषि वचन.

देख कर चिरकुमारी
अक्षय अखंडित वसुन्धरा
भूल गया ययाति
ऋषि वचनों को.

“क्षमा और दया
है निर्बलोंकी भाषा”
वसुंधरा है वीरभोग्या
शक्तिशाली को ही है यहाँ
जीने का अधिकार.

पैरों तले कुचल दिया उसने
शुद्रतम जीवन.
जों बड़े थे, वे भी बने
मृगया मनोरंजन के साधन.

राक्षसी अट्टाहास कर
विक्षिप्त बलात्कारी मनुजपुत्र
टूट पड़ा धरती पर
तार-तार कर दिए उसने
धरती के हरेभरे वसन.

गड़ा दिए धरती के
कोमल वक्ष में
अपने राक्षसी पैने दांत
शर्म से झुक गयी मनुजता
जब बहने लगा रुधिर सीने से.

घायल धरती के ज़ख्मों से
उठने लगी दुर्गन्ध
ययाति का दम भी
तब उसमे घुटने लगा.

स्वर्गस्थ देव चिल्लाये
ययाति, धरती से बंधी है
तेरे जीवन की गांठ
छोड़ भोग मार्ग
बचा अपनी धरती को.

देख कर धरती की दशा
ययाति भी सोचने लगा.
क्या करदूं अपनी शक्ति से
देवताओंको उनके
स्वर्णिम स्वर्ग से च्युत
तब फिर भोग सकूंगा
नित नूतन अप्सराओंको.

क्या!
अक्षय अमृत का पात्र
बुझा सकेगा मेरी प्यास
.

या ढूँढू अपने लिए
सदूर अंतरिक्ष में
दूसरी धरा.

समय ही लिखेगा
भाग्य मनुजपुत्र का
त्याग कर नीच भोग मार्ग
बचाएगा अपनी धरा को.

या

खो जायेगा मनुजपुत्र
गहरे वीरान अन्तरिक्ष में
सदा के लिए?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh